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भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस Indian National Congress से सम्बंधित Notes

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस Indian National Congress  भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पूरा नाम: – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस गठन: 28 दिसंबर 1885 संस्थापक: ए.ओ.ह्युम प्रथम अध्यक्ष: डब्ल्यू सी बनर्जी 1883 ईसवी में सुरेंद्रनाथ बनर्जी ने कोलकाता में  भारतीय राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस (संघ)  की स्थापना की. 1883 ईसवी में पहली भारतीय राष्ट्रीय कांफ्रेंस बुलाई गई थी, जिसकी अध्यक्षता आनंद मोहन बोस ने किया था तथ इसमें भारत के सभी बड़े बड़े नगरों से प्रतिनिधित्व बुलाए गए थे. भारतीय राष्ट्रीय कांफ्रेंस कोलकाता में क्रिसमस के सप्ताह में आयोजित की गई थी लेकिन शीघ्र ही भारतीय राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस, का नाम बदलकर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कर दिया गया. लाला लाजपत राय का यह विचार था कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस इसलिए बनी की अंग्रेजी राज्य की रक्षा हेतु “अभय कपाट” ( Safety Valve) के रूप में कार्य कर सकें. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का पहला अधिवेशन 1885 ईसवी में पहला अधिवेशन व्योमेश चंद्र बनर्जी की अध्यक्षता में मुंबई के गोकुल तेजपाल संस्कृत विद्यालय में किया गया था. श्रीमती सरोजिनी नायडू राष्ट्रीय कांग्रेस क...

हाॅब्स का व्यक्तिवाद

हाॅब्स का व्यक्तिवाद समाजवाद का अर्थ, परिभाषा, सिद्धांत, विशेषताएं हाॅब्स का व्यक्तिवाद  (Hobbes’s individualism)   हरमन का कथन है कि “यद्यपि हाॅब्स उन प्रतिबंधों को स्वीकार करता है, जिन्हें संप्रभु, व्यक्ति पर आरोपित कर सकता है तथापि उसके सिद्धांत में व्यक्तिवाद के शक्तिशाली तत्व मौजूद हैं। सेबाइन के अनुसार “लाॅक का पूर्वगामी होने के चलते हाॅब्स को पहला दार्शनिक माना जाता है, जिसके दर्शन में व्यक्तिवाद का आधुनिक तत्व मिलता है।” वेपर के शब्दों में, “सबसे बड़ी निरपेक्षवादी के रूप में प्राय: चित्रित हाॅब्स राजनीतिक चिंतन के इतिहास में शायद सबसे बड़ा व्यक्तिवादी है।” जब हम हाॅब्स के राजनीतिक दर्शन पर विचार करते हैं, तो पाते हैं कि उपरोक्त विद्वानों के कथन पूर्णतया सार्थक हैं। संप्रभु की असीम और निरपेक्ष शक्ति के सिद्धांत से जुड़े हुए हाॅब्स ने वस्तुतः शासक की निरपेक्षता और सर्व शक्ति को प्रधानता नहीं दी है। उसका शक्ति सिद्धांत, जैसा कि प्रोफ़ेसर सेबाइन कहते हैं व्यक्तिवाद का अनिवार्य पूरक है। इस संबंध में निम्नलिखित बातें उल्लेखनीय है: (1) हाॅब्स के संपूर्ण दर्शन में व्यक्तिवाद क...

समाजवाद का अर्थ, परिभाषा, सिद्धांत, विशेषताएं

समाजवाद का अर्थ, परिभाषा, सिद्धांत, विशेषताएं समाजवाद अंग्रेजी भाषा के सोशलिज्म (socialism) शब्द का हिन्दी पर्यायवाची है। सोशलिज्म शब्द की उत्पत्ति सोशियस socious शब्द से हु जिसका अर्थ समाज होता है। इस प्रकार समाजवाद का समबन्ध समाज और उसके सुधार से है। अर्थात समाजवाद मलू त: समाज से सम्बन्धित है और न्यायपूर्ण समाज की स्थापना के लिए प्रयत्नशील है। समाजवाद शब्द मुख्य रूप से तीन अर्थो में प्रयुक्त किया जाता है - यह एक राजनीतिक सिद्धांत है।  यह एक राजनीतिक आंदोलन है।  इसका प्रयोग एक विशेष प्रकार की समाजिक व आर्थिक व्यवस्था के लिये किया जाता है।  समाजवाद की परिभाषा  वेकर कोकर के अनुसार -  ‘‘समाजवाद वह नीति या सिध्दांत है जिसका उददेश्य एक लोकतांत्रिक केन्द्रीय सत्ता द्वारा प्रचलित व्यवस्था की अपेक्षा धन का श्रेष्ठ कर वितरण और उसके अधीन रहते हुए धन का श्रेृठतर उत्पादन करना है।’’  बर्नार्ड शॉ के अनुसार -  ‘‘समाजवाद का अभिप्राय संपत्ति के सभी आधारभूत साधनो पर नियंत्रण से है। यह नियंत्रण समाजवाद के किसी एक वर्ग द्वारा न होकर स्वयं समाज के द्वारा होगा और धीरे...